रायपुर – टीएस सिंहदेव ने पंचायत विभाग से इस्तीफा से दिया है। उनके इस इस्तीफे से राजधानी में राजनैतिक हलचल तेज हो गई है। चार पन्ने के इस्तीफे में उन्होंने अपनी व्यथा का भी उल्लेख किया है।प्रदेश के स्वास्थ, परिवार कल्याण वी पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने शनिवार को पंचायत विभाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। जिसके बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में भुचाल आ गया है। सिंहदेव अपने प्रभार वाले बाकी विभागों में कैबिनेट मंत्री के रूप में बने रहेंगे। बात दें कि श्री सिंहदेव के पास पंचायत एवं ग्रामीण विकास, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, बीससूत्रीय, वाणिज्यिक कर (जीएसटी) का प्रभार था। मंत्री ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से इस्तीफा सौंप दिया है।
अपने इस्तीफा में उन्होने लिखा कि
प्रति, माननीय श्री भूपेश बघेल जी । मुख्यमंत्री , छत्तीसगढ़ शासन विगत तीन वर्षों से अधिक समय से मैं पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के भारसाधक मंत्री के रूप में कार्य कर रहा हूं । इस दौरान कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित हुई हैं जिससे आपको अवगत कराना चाहता हूं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत् प्रदेश के आवास विहीन लोगों को आवास बनाकर दिया जाना था जिसके लिए मैंने कई बार आपसे चर्चा कर राशि आवंटन का अनुरोध किया था किन्तु इस योजना में राशि उपलब्ध नहीं की जा सकी। फलस्वरूप प्रदेश के लगभग 8 लाख लोगों के लिए आवास नहीं बनाये जा सके। इसके अतिरिक्त 8 लाख घर बनाने में से करीब 10 हजार करोड़ प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सहायक होते हमारे जन घोषणा पत्र में छत्तीसगढ़ के 36 लक्ष्य अंतर्गत ग्रामीण आवास का अधिकार प्रमुख रूप से उल्लेखित है। विचारणीय है कि प्रदेश में वर्तमान सरकार के कार्यकाल में बेघर लोगों के लिए एक भी आवास नहीं बनाया जा सका और योजना की प्रगति निरंक रही । मुझे दुःख है कि इस योजना का लाभ प्रदेश के आवास विहीन लोगों को नहीं मिल सका । । किसी भी विभाग के अधीन Discretionary योजनाओं के अंतर्गत कार्यो की स्वीकृति का अनुमोदन उस विभाग के भारसाधक मंत्री का निर्धारित अधिकार है किन्तु मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के अंतर्गत कार्यों की अंतिम स्वीकृति हेतु Rules of Business के विपरीत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की एक समिति गठित की गयी । कार्यों की स्वीकृति हेतु मंत्री के अनुमोदन उपरांत अंतिम निर्णय मुख्य सचिव की समिति द्वारा लिये जाने की प्रक्रिया बनायी गयी जो प्रोटोकाल के विपरीत और सर्वथा अनुचित है , जिस पर मेरे द्वारा समय – समय पर लिखित रूप से आपत्ति दर्ज करायी गयी । किन्तु आजपर्यन्त इस व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सका है फलस्वरूप 500 करोड़ से ज्यादा की राशि का उपयोग मंत्री / विधायक / जनप्रतिनिधि के सुझावों के अनुसार विकास कार्यों में नहीं किया जा सका । वर्तमान में पंचायतों में अनके विकास कार्य प्रारंभ ही नहीं हो पाये । पेसा अधिनियम आदिवासी भाई – बहनों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है । इसे प्रदेश में लागू करने के संबंध में जनघोषणा पत्र में भी वादा किया था तथा काफी मेहनत से नियम बनाये गये थे ताकि उसे सफलतापूर्वक प्रदेश में लागू किया जा सके । दिनांक 13 जून , 2020 से प्रदेश के आदिवासी ब्लाकों में जाकर वहां के स्थानीय लोगों , स्थानीय जनप्रतिनिधियों इत्यादि से निरंतर 02 वर्षों से संवाद स्थापित कर इसका प्रारूप तैयार किया गया किन्तु विभाग द्वारा जो प्रारूप कैबिनेट कमेटी को भेजा गया था जिसके अनुसार चर्चा हुई उसमें जल , जंगल जमीन से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दुओं को बदल कर कैबिनेट की प्रेसिका में शायद पहली बार बदल दिया गया । भारसाधक मंत्री को विश्वास में नहीं लिया गया जो कि अस्वस्थ्य परम्परा को स्थापित करेगा । इस विषय पर पृथक से मैंने व्यक्तिगत पत्र भी आपको लिखा है । जनघोषणा – पत्र में किये गये वादों में पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकारों को पूर्ण रूप से लागू करना भी है जिसके लिए मैंने आपसे कई बार चर्चा तथा विभागीय तौर पर भी पहल की किन्तु मुझे यह निराश मन से कहना पड़ रहा है कि इस पर आजपर्यन्त कोई भी सहमति / सकारात्मक पहल नहीं हो पायी ।महात्मा गांधी नरेगा योजना का सफल क्रियान्वयन इस प्रदेश में हुआ है । उल्लेखनीय है कि कोरोना काल में जब जरूरतमंदों को रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत थी . छत्तीसगढ़ इस योजना के क्रियान्वयन में सम्पूर्ण भारत में अग्रणी रहा 20 हजार से अधिक कोविड केयर सेंटर्स का सफलतापूर्वक संचालन पंचायतों द्वारा किया गया । प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में योजना के माध्यम से हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देने में सफल रहे । जिसकी प्रशंसा देश के सभी हिस्सों में हुई मनरेगा का कार्य करने वाले रोजगार सहायकों के मेहनत को देखते हुये उनके वेतनवृध्दि का प्रस्ताव पंचायत विभाग द्वारा वित्त विभाग को प्रेषित किया गया जो कि वित्त विभाग की सहमति न मिलने के कारण आजपर्यन्त लंबित है । इस विषय पर व्यक्तिगत तौर पर आपसे कई बार चर्चा हुई । एक साजिश के तहत् रोजगार सहायकों से हड़ताल करवाकर मनरेगा के कार्यों को प्रभावित किया गया जिसमें सहायक परियोजना अधिकारियों ( संविदा ) की भूमिका स्पष्ट रूप से निकल कर आयी । स्वयं आपके द्वारा हड़तालरत कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने के लिए एक कमेटी गठित की गई इसके बाद भी हड़ताल वापस नहीं ली गई हड़ताल के कारण लगभग 1250 करोड़ का मजदूरी भुगतान प्रभावित हुआ तथा ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में नहीं पहुंच सका समन्वय के माध्यम से आपसे अनुमोदन लेकर सहायक परियोजना अधिकारियों ( संविदा ) के स्थान पर रेगुलर सहायक परियोजना अधिकारियों की पदस्थापना भी कर दी गयी थी ताकि मनरेगा का कार्य सुचारू रूप से चल सके और रोजगार की तालाश कर रहे नागरिकों को रोजगार से वंचित न होना पड़े । जब हमारे प्रदेश को रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत थी , तो सहायक परियोजना अधिकारियों के द्वारा कार्य को प्रभावित रखा गया , क्रमश : – 4जबकि रोजगार सहायक अपने काम पर वापस आना चाह रहे थे । जब मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई कि हटाये गये सहायक परियोजना अधिकारी ( संविदा ) की पुनर्नियुक्ति की कार्यवाही चलने लगी , तब दूरभाष पर मैंने आपसे चर्चा कर अपना मत दिया था कि उन्हें उसी पद पर पुनः नियुक्ति न दिया जाये और अगर रखना ही है तो समकक्ष वेतन के आधार पर विभाग के अन्य पद पर रखा जा सकता है , उसी पद पर पुनः रखना सर्वथा अनुचित रहेगा तथा भविष्य में आंदोलन की प्रवृत्ति बलवती होगी तथा अच्छा संदेश नहीं जायेगा । ऐसी परिस्थिति में ऐसे कर्मचारी जो कि जनहित तथा राज्यहित के विपरीत कार्य कर रहे थे , उनकी पुनः नियुक्ति अनुचित है । लेकिन इन सब के बावजूद कल इनकी पुनः पदस्थापना मेरे बगैर अनुमोदन के कर दी गयी , जो कि मुझे स्वीकार्य नहीं है । अतः जन – घोषणा पत्र के विचार धारा के अनुरूप उपरोक्त महत्वपूर्ण विषयों को दृष्टिगत रखते हुए , मेरा यह मत है कि विभाग के सभी लक्ष्यों को समपर्ण भाव से पूर्ण करने में वर्तमान परिस्थितियों में स्वयं को असमर्थ पा अतएव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के भार से मैं अपने आप को पृथक कर रहा हूं । आपने मुझे शेष जिन विभागों की जिम्मेदारी दी उन्हें अपनी पूर्ण क्षमता और निष्ठा से निभाता रहूंगा ।आपका ( टी . एस . सिंहदेव )
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